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कभी साया तो कभी धूप का मंज़र बदले - मुख़तार शमीम कविता - Darsaal

कभी साया तो कभी धूप का मंज़र बदले

कभी साया तो कभी धूप का मंज़र बदले

दर-ओ-दीवार हुए दश्त-नुमा घर बदले

मौसमों ने तो दरख़्तों को दिए पैराहन

और हवाओं ने उड़ानों के लिए पर बदले

उस ने चट्टान में इक फूल खिलाया तो क्या

पत्थरों को न बदलना था न पत्थर बदले

रेग-ज़ारों में चला क़ाफ़िला-ए-मौज-ए-हयात

तिश्नगी रेत के सहरा में समुंदर बदले

इक तिरे ग़म के उजालों की रिदाएँ मिल जाएँ

ज़िंदगी जिस्म की ये मैली सी चादर बदले

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In Hindi By Famous Poet Mukhtar Shameem. is written by Mukhtar Shameem. Complete Poem in Hindi by Mukhtar Shameem. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.