Ghazals of Mukhtar Shameem
नाम | मुख़तार शमीम |
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अंग्रेज़ी नाम | Mukhtar Shameem |
वक़्त के चेहरे पे चढ़ती धूप का ग़ाज़ा लगा
सुख़न सुख़न जो किसी कर्ब से इबारत था
सुब्ह रंगीन-ओ-जवाँ शाम सुहानी माँगे
पास अपने बोरिया बिस्तर न था
नामा-ए-गुल में किसी शोख़ की तहरीर का रंग
मैं ज़िंदगी के हज़ारों अज़ाब झेल गया
लफ़्ज़ों में कैसा रंग-ए-मआ'नी दिखाई दे
ख़ुद अपने आप को धोका दिया है
ख़यालों में भी अक्सर चौंक उठा हूँ
ख़ामोशियों के गहरे समुंदर में डूब जाएँ
कभी साया तो कभी धूप का मंज़र बदले
है तक़ाज़ा-ए-जुनूँ सिलसिला-वार मिले
फ़रेब-ए-हुस्न नज़र का दिखाई देता है
दिल लरज़ रहा है क्यूँ इस के ख़त को पा कर भी