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ख़ुदा की ज़ात ने जब दर्द का नुज़ूल किया - मुख़तार जावेद कविता - Darsaal

ख़ुदा की ज़ात ने जब दर्द का नुज़ूल किया

ख़ुदा की ज़ात ने जब दर्द का नुज़ूल किया

मिरे सिवा न किसी और ने क़ुबूल किया

अगरचे एक क़बीले के फ़र्द हैं दोनों

तुझे गुलाब बनाया मुझे बबूल किया

कभी ये ग़म कि अधूरा रहा हमारा काम

कभी ये सोच कि जितना किया फ़ुज़ूल किया

हवा ने गर्द उड़ाई है बारहा मेरी

पलट पलट के ज़मीं ने मुझे क़ुबूल किया

हर एक ज़ख़्म को बख़्शी गुलाब की सूरत

बदन की सेज पे काँटों को हम ने फूल किया

सुना रहे हैं शजर रुख़्सत-ए-बहार का सोग

समर तो क्या कोई पत्ता नहीं क़ुबूल किया

किसी को ख़द से ज़ियादा न मोहतसिब जाना

फ़क़त ज़मीर की आवाज़ को उसूल किया

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In Hindi By Famous Poet Mukhtar Javed. is written by Mukhtar Javed. Complete Poem in Hindi by Mukhtar Javed. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.