नज़र-नवाज़ है हुस्न-ए-ख़जिस्ता-पय अब भी
नज़र-नवाज़ है हुस्न-ए-ख़जिस्ता-पय अब भी
खटक रही है मगर दिल में कोई शय अब भी
ब-क़ैद-ए-तौबा वही एहतिराम है अब भी
मिरी नज़र में है ख़ुर्शीद-ए-जाम-ए-मय अब भी
मैं ग़र्क़-ए-बे-ख़ुदी-ए-शौक़ ही सही लेकिन
तुम्हें पुकार लूँ इतना तो होश है अब भी
ये ज़र्फ़ है मिरा ऐ राहबर-नुमा रहज़न
कि चल रहा हूँ तिरे साथ पय-ब-पय अब भी
ग़लत नहीं कि हो तुम जादा-आज़मा-ए-हरम
न होगी राह-ए-वफ़ा शैख़ तुम से तय अब भी
वो सोज़-ओ-साज़-ए-ग़म-ए-इश्क़ अब कहाँ लेकिन
निकलती है मिरे नग़्मों से ग़म की लय अब भी
कभी इधर से कोई नय-नवाज़ गुज़रा था
फ़ज़ा में गूँज रही है सदा-ए-नय अब भी
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