ख़ुद-पसंदाना तक़ाज़ों पर अगर जाएगी
ख़ुद-पसंदाना तक़ाज़ों पर अगर जाएगी
ज़ीस्त अपनी ही निगाहों से उतर जाएगी
हम ने माना यहीं खींच आएगी मंज़िल लेकिन
ऐ जुनूँ इज़्ज़त-ए-अर्बाब-ए-सफ़र जाएगी
आप तकलीफ़-ए-तवज्जोह न करें बहर-ए-ख़ुदा
ज़िंदगी जैसे भी गुज़रेगी गुज़र जाएगी
लोग क्या समझेंगे पहनाई-ए-दामान-ए-जुनूँ
जब भी जाएगी गरेबाँ पे नज़र जाएगी
हम तो बद-नाम-ए-वफ़ा होंगे तो होंगे लेकिन
आबरू तेरी भी ऐ दीदा-ए-तर जाएगी
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