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ग़म-ए-जानाँ में समो कर ग़म-ए-दौराँ हम ने - मुख़्तार हाशमी कविता - Darsaal

ग़म-ए-जानाँ में समो कर ग़म-ए-दौराँ हम ने

ग़म-ए-जानाँ में समो कर ग़म-ए-दौराँ हम ने

दो फ़सानों को दिया एक ही उनवाँ हम ने

ग़म से घबरा के जो की कोशिश-ए-दरमाँ हम ने

और भी काँटों में उलझा लिया दामाँ हम ने

देखें क्या होता है तज्दीद-ए-नशेमन का समाँ

मुंतख़ब की है फिर इक शाख़-ए-गुल्सिताँ हम ने

ग़म से बचने के लिए वज़्अ किए थे जो उसूल

कर दिए नाज़ुकी-ए-वक़्त पे क़ुर्बां हम ने

आज 'मुख़्तार' असीर-ए-ग़म-ए-दौराँ है वो दिल

जिस को समझा था हरीफ़-ए-ग़म-ए-दौराँ हम ने

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In Hindi By Famous Poet Mukhtar Hashmi. is written by Mukhtar Hashmi. Complete Poem in Hindi by Mukhtar Hashmi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.