Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_6411b52f0b3abcba7594266b9739b611, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
इंकार किसे, औज-ए-क़मर तक नहीं पहुँचा - मुख़लिस वजदानी कविता - Darsaal

इंकार किसे, औज-ए-क़मर तक नहीं पहुँचा

इंकार किसे, औज-ए-क़मर तक नहीं पहुँचा

इंसान मगर दिल के नगर तक नहीं पहुँचा

उट्ठा तो हर इक झुकती हुई शाख़ की जानिब

हाथ अपना किसी शाख़-ए-समर तक नहीं पहुँचा

तूफ़ान की ज़द पर है अगर शहर उसे क्या

वो ख़ुश है कि पानी अभी घर तक नहीं पहुँचा

हर राह लिए जाती है इक बंद गली तक

रस्ता कोई उस शोख़ के दर तक नहीं पहुँचा

दम भरता रहा अपनी वफ़ाओं का जो 'मुख़्लिस'

वो शख़्स तो लेने को ख़बर तक नहीं पहुँचा

(483) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

In Hindi By Famous Poet Mukhlis Wajdani. is written by Mukhlis Wajdani. Complete Poem in Hindi by Mukhlis Wajdani. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.