रफ़्ता रफ़्ता होश मुझ को इस क़दर आ जाएगा
रफ़्ता रफ़्ता होश मुझ को इस क़दर आ जाएगा
आँसुओं को गीत लिखने का हुनर आ जाएगा
ढूँडना मेरी तहों में प्यास अपनी के निशाँ
मेरी आँखों में समुंदर भी नज़र आ जाएगा
अपने सीने में दबा रक्खा है मैं नें उस का दिल
आख़िरश थक जाएगा तो अपने घर आ जाएगा
रौशनाई न सही 'आलम' लिखेगा दास्ताँ
काम अपने एक दिन ख़ून-ए-जिगर आ जाएगा
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