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यही नहीं कि बस ग़म-ए-सफ़र हमारे साथ है - मुजीब ख़ैराबादी कविता - Darsaal

यही नहीं कि बस ग़म-ए-सफ़र हमारे साथ है

यही नहीं कि बस ग़म-ए-सफ़र हमारे साथ है

मिज़ाज-ए-शबनम ओ दिल-ए-शरर हमारे साथ है

उन्हें कुलाह-ए-ख़्वाजगी पे नाज़ है हुआ करे

ये अंजुमन की अंजुमन मगर हमारे साथ है

शब-ए-सफ़र का ग़म ही क्या शब-ए-सफ़र है मुख़्तसर

अभी तो एक दल सा राहबर हमारे साथ है

तुम्हारे दामनों में संग-हा-ए-नौ-ब-नौ सही

ख़याल-ए-इंदिमाल-ए-ज़ख़्म-ए-सर हमारे साथ है

वो लोग और उन की वो दुकाँ तो बढ़ गई मगर

सितमगरों की तब्अ' शीशागर हमारे साथ है

जिसे क़दम क़दम पे ख़ुद ही हाजत-ए-दवा न हो

बताओ कोई ऐसा चारा-गर हमारे साथ है

नहीं अगर तुफ़ंग ओ तीर ओ तेशा ओ तबर तो क्या

दिल-ए-जवाँ जुनून-ए-मो'तबर हमारे साथ है

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In Hindi By Famous Poet Mujeeb Khairabadi. is written by Mujeeb Khairabadi. Complete Poem in Hindi by Mujeeb Khairabadi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.