कितने ख़्वाब टूटे हैं कितने चाँद गहनाए
कितने ख़्वाब टूटे हैं कितने चाँद गहनाए
जो रक़ीब-ए-ज़ुल्मत हो अब वो आफ़्ताब आए
दुश्मनों को अपनाया दोस्तों के ग़म खाए
फिर भी अजनबी ठहरे फिर भी ग़ैर कहलाए
ना-ख़ुदा की निय्यत का खुल गया भरम तो क्या
बात जब है कश्ती भी डूबने से बच जाए
हादसे भी बरसेंगे ज़लज़ले भी आएँगे
ये सफ़र क़यामत है तुम कहाँ चले आए
फूल फूल बरहम है ख़ार ख़ार दुश्मन है
हम 'मुजीब' गुलशन से लौ लगा के पछताए
(349) Peoples Rate This