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कितने ख़्वाब टूटे हैं कितने चाँद गहनाए - मुजीब ख़ैराबादी कविता - Darsaal

कितने ख़्वाब टूटे हैं कितने चाँद गहनाए

कितने ख़्वाब टूटे हैं कितने चाँद गहनाए

जो रक़ीब-ए-ज़ुल्मत हो अब वो आफ़्ताब आए

दुश्मनों को अपनाया दोस्तों के ग़म खाए

फिर भी अजनबी ठहरे फिर भी ग़ैर कहलाए

ना-ख़ुदा की निय्यत का खुल गया भरम तो क्या

बात जब है कश्ती भी डूबने से बच जाए

हादसे भी बरसेंगे ज़लज़ले भी आएँगे

ये सफ़र क़यामत है तुम कहाँ चले आए

फूल फूल बरहम है ख़ार ख़ार दुश्मन है

हम 'मुजीब' गुलशन से लौ लगा के पछताए

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In Hindi By Famous Poet Mujeeb Khairabadi. is written by Mujeeb Khairabadi. Complete Poem in Hindi by Mujeeb Khairabadi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.