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हम अहल-ए-अज़्म अगर दिल से जुस्तुजू करते - मुजीब ख़ैराबादी कविता - Darsaal

हम अहल-ए-अज़्म अगर दिल से जुस्तुजू करते

हम अहल-ए-अज़्म अगर दिल से जुस्तुजू करते

तो और मंज़िल-ए-जानाँ को सुर्ख़-रू करते

न दस्तरस में बहारें न दिल ही क़ाबू में

ग़रीब-ए-शहर कहाँ तक जिगर लहू करते

किसे ख़बर है कि दिल के कँवल खिलें न खिलें

कटी है उम्र बहारों की आरज़ू करते

न आ सके थे ये हालात का तक़ाज़ा था

जो आ गए थे तो फिर खुल के गुफ़्तुगू करते

ये फ़ैसला तो किया दिल ने बार बार मगर

इक आरज़ू ही रही तर्क-ए-आरज़ू करते

सुकून-ए-सीना-ए-तूफ़ाँ 'मुजीब' क्या शय है

ये जानिए तो न साहिल की आरज़ू करते

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In Hindi By Famous Poet Mujeeb Khairabadi. is written by Mujeeb Khairabadi. Complete Poem in Hindi by Mujeeb Khairabadi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.