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अपनों का ये आलम क्या कहिए मिलते हैं तो बेगानों की तरह - मुजीब ख़ैराबादी कविता - Darsaal

अपनों का ये आलम क्या कहिए मिलते हैं तो बेगानों की तरह

अपनों का ये आलम क्या कहिए मिलते हैं तो बेगानों की तरह

इस दौर में दिल बे-क़ीमत हैं टूटे हुए पैमानों की तरह

परवाने तो जल बुझते हैं मगर दिल हैं कि सुलगते रहते हैं

आसाँ तो नहीं जीते रहना हम ऐसे गिराँ-जानों की तरह

या शम्अ' की लो ही मद्धम है या सर्द है दिल की आग अभी

सोचा था कि उड़ कर पहुँचेंगे उस बज़्म में परवानों की तरह

तिनकों के सफ़ीने ले ले कर क्या क्या न मुक़ाबिल आई ख़िरद

हम अहल-ए-जुनूँ रक़्साँ ही रहे बिफरे हुए तूफ़ानों की तरह

या कौन-ओ-मकाँ में ख़्वार हुए या कौन-ओ-मकाँ की ख़ैर नहीं

जीना है तो इंसानों की तरह मरना है तो इंसानों की तरह

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In Hindi By Famous Poet Mujeeb Khairabadi. is written by Mujeeb Khairabadi. Complete Poem in Hindi by Mujeeb Khairabadi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.