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मशक़्क़त की तपिश में जिस्म का लोहा गलाते हैं - मुजाहिद फ़राज़ कविता - Darsaal

मशक़्क़त की तपिश में जिस्म का लोहा गलाते हैं

मशक़्क़त की तपिश में जिस्म का लोहा गलाते हैं

बड़ी मुश्किल से इस मिट्टी को हम सोना बनाते हैं

तरसते हैं कहीं कुछ लोग रोटी के निवालों को

कहीं हर शाम शहज़ादे शराबों में नहाते हैं

कभी सूखे हुए पेड़ों का वो मातम नहीं करते

हों जिन के ज़ेहन तामीरी नए पौदे लगाते हैं

ख़ुदाया रहम इन मासूम बच्चों के लड़कपन पर

जिन्हें काग़ज़ सियह करने थे वो काग़ज़ उठाते हैं

बहुत आँसू रुलाये हैं हमें तक़्सीम-ए-गुलशन ने

मुहाजिर वो समझते हैं तो ये बाग़ी बताते हैं

मैं अपने ज़र्फ़ से बढ़ कर अगर कुछ माँग लेता हूँ

तो फिर एहसास के शोले सुकूँ मेरा जलाते हैं

मुसीबत कोई आ जाए किसी पर इस ज़माने में

तो फिर क्या ग़ैर क्या अपने सभी दामन बचाते हैं

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In Hindi By Famous Poet Mujahid Faraaz. is written by Mujahid Faraaz. Complete Poem in Hindi by Mujahid Faraaz. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.