Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_ae5854e5b62834f781e6f01e0f75b88e, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
ग़मों की धूप कड़ी दोपहर से गुज़रे हैं - मुहिब कौसर कविता - Darsaal

ग़मों की धूप कड़ी दोपहर से गुज़रे हैं

ग़मों की धूप कड़ी दोपहर से गुज़रे हैं

तमाम उम्र झुलसती डगर से गुज़रे हैं

हमारी पलकों से टपके न क्यूँ गिराँ-ख़्वाबी

फ़राज़-ए-शब से तुलू-ए-सहर से गुज़रे हैं

अजीब बात है घर का निशाँ नहीं मिलता

हज़ार बार उन्ही दीवार-ओ-दर से गुज़रे हैं

कभी सुकूँ है कभी इज़्तिराब का आलम

अजीब कैफ़ीयत-ए-ख़ैर-ओ-शर से गुज़रे हैं

भरोसा कौन करे अब सदा-ए-सहरा का

मिसाल-ए-गर्द इसी रहगुज़र से गुज़रे हैं

(414) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

In Hindi By Famous Poet Muhib Kausar. is written by Muhib Kausar. Complete Poem in Hindi by Muhib Kausar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.