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उम्र भर जिस पे तकिया रहा कुछ न था दिल नहीं मानता - मुहिब आरफ़ी कविता - Darsaal

उम्र भर जिस पे तकिया रहा कुछ न था दिल नहीं मानता

उम्र भर जिस पे तकिया रहा कुछ न था दिल नहीं मानता

क्या करूँ तजज़ियों का अटल फ़ैसला दिल नहीं मानता

कौंद कर एक लम्हा जो फिर जा मिला वक़्त के अब्र में

छोड़ देगी उसे वक़्त की मामता दिल नहीं मानता

घुप-अँधेरे से लेती है क्यूँ-कर जन्म रौशनी की लगन

ये करिश्मा नहीं है किसी शम्अ का दिल नहीं मानता

ख़ुश्क ही क्यूँ न हो जाए दरिया मिरा लहर बन बन के मैं

ढूँढना छोड़ दूँ ख़ुश्कियों का सिरा दिल नहीं मानता

अपने मरकज़ को इक वहम समझा किया अक़्ल का दायरा

जिस को कुछ अपने दाम-ए-कशिश के सिवा दिल नहीं मानता

उस की तस्वीर को देखते देखते ये हुआ क्या मुझे

यानी बेहिस है तस्वीर की हर अदा दिल नहीं मानता

दिल में कुछ है ज़बाँ से निकलता है कुछ बात ऐसी है कुछ

मेरा मतलब 'मुहिब' कोई पा जाएगा दिल नहीं मानता

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In Hindi By Famous Poet Muhib Aarfi. is written by Muhib Aarfi. Complete Poem in Hindi by Muhib Aarfi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.