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ख़याल-ए-ज़ेहन-शिकन से ज़बान भर आ जाए - मुहिब आरफ़ी कविता - Darsaal

ख़याल-ए-ज़ेहन-शिकन से ज़बान भर आ जाए

ख़याल-ए-ज़ेहन-शिकन से ज़बान भर आ जाए

ये हो तो हाथ मिरे कोई शेर-ए-तर आ जाए

हमारे मिटने से दुनिया हुई है ऐसी निहाँ

कि जैसे बीज से बाहर कोई शजर आ जाए

बनाई मैं ने जो बे-सूरती के पत्थर से

मैं क्या करूँ इसी मूरत पे दिल अगर आ जाए

चमन तमाम तो आहट पे उस की झूम उठा

यहाँ ये ख़ब्त वो सैल-ए-हवा नज़र आ जाए

भँवर मुसिर है कि आग़ोश-ए-तंग में दरिया

तमाम वुसअ'त-ए-नख़वत समेट कर आ जाए

कशिश भी उस की ग़ज़ब रोब-ए-हुस्न भी ऐसा

कि सामना ही न कर पाऊँ वो अगर आ जाए

रहोगे फिर भी 'मुहिब' सत्ह-ए-बहर ही से दो-चार

अगर तुम्हारे लिए तह भी सत्ह पर आ जाए

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In Hindi By Famous Poet Muhib Aarfi. is written by Muhib Aarfi. Complete Poem in Hindi by Muhib Aarfi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.