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जो ज़ख़्मों से अपने बहलते रहेंगे - मुहिब आरफ़ी कविता - Darsaal

जो ज़ख़्मों से अपने बहलते रहेंगे

जो ज़ख़्मों से अपने बहलते रहेंगे

वही फूल हैं शहद उगलते रहेंगे

घटाएँ उठीं साँप वीरानियों के

इन्ही आस्तीनों में पलते रहेंगे

शरीअ'त ख़स-ओ-ख़ार ही की चलेगी

अलम रंग-ओ-बू के निकलते रहेंगे

नई बस्तियाँ रोज़ बस्ती रहेंगी

जिन्हें मेरे सहरा निगलते रहेंगे

मचलते रहें रौशनी के पतंगे

दिए मेरे काजल उगलते रहेंगे

रवाँ हर तरफ़ ज़ौक़-ए-पस्ती रहेगा

बुलंदी के चश्मे उबलते रहेंगे

जिसे साँस लेना हो ख़ुद आड़ कर ले

ये झोंके हुआ के तो चलते रहेंगे

ये पत्ते तो अब फूल क्या हो सकेंगे

मगर उम्र भर हाथ मलते रहेंगे

'मुहिब' रास्ती है इबारत कजी से

मिरे बल कहाँ तक निकलते रहेंगे

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In Hindi By Famous Poet Muhib Aarfi. is written by Muhib Aarfi. Complete Poem in Hindi by Muhib Aarfi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.