इक लहर सी देखी गई पाए न गए हम
हालाँकि यहीं थे कहीं आए न गए हम
गिर्दाब में क्या है जिसे तूफ़ान मिटाए
हाँ गर्दिश-ए-दौराँ से मिटाए न गए हम
पाला था उसे बाद से बाराँ से बचा कर
जिस आग से ऐ शम्अ' बचाए न गए हम
हैं बंद ये किस आईना-ख़ाने में कि बाहर
नायाब नज़ारे नज़र आए, न गए हम