अंदर तो ख़यालों के हो आए ख़याल अपना
अंदर तो ख़यालों के हो आए ख़याल अपना
इफ़शा-ए-हक़ीक़त से डरता है सवाल अपना
काग़ज़ की सदाक़त हूँ गो वक़्फ़-ए-किताबत हूँ
सफ़्हों से इबारत हूँ खुलना है मुहाल अपना
आईना है ज़ात अपनी मामूर हूँ जल्वों से
मस्तूर है नज़रों से हर चंद जमाल अपना
ख़ुश है कि जो टूटी है आख़िर कोई शय होगी
ख़ुद में नज़र आता है शीशे को जो बाल अपना
पर्दे ने कहा मुझ को पर्दे ने सुना मुझ को
नग़्मा हूँ समझता हूँ इतना ही कमाल अपना
ग़ुंचे में रहा हूँ मैं तिनके में ढला हूँ मैं
किरनों की दुआ हूँ मैं शो'ला है मआ'ल अपना
ऐ हम-नज़रो ठहरो क्या हो जो बरामद हो
हर गोशा-ए-ख़लवत से इक नक़्श-ए-ख़याल अपना
तह सत्ह तक आ पहुँची इक मौज न हाथ आई
कब तक ये मुहिम आख़िर अब खींच लूँ जाल अपना
ख़ुशबू से 'मुहिब' खेलो क्या ऊद को रोते हो
इस अहद की नज़रों से मख़्फ़ी है मलाल अपना
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