अजब बे-कैफ़ है रातों की तन्हाई कई दिन से
अजब बे-कैफ़ है रातों की तन्हाई कई दिन से
किसी की याद भी दिल में नहीं आई कई दिन से
बहुत मग़्मूम है शान-ए-मसीहाई कई दिन से
बढ़ी जाती है ज़ख़्म-ए-दिल की गहराई कई दिन से
कली ने भी उड़ाया था मज़ाक़-ए-गिर्या-ए-शबनम
पड़ी है ख़ाक पर ख़ुश्क और मुरझाई कई दिन से
चुरा लाई है शायद निकहत-ए-गुल सेहन-ए-गुलशन से
नसीम-ए-सुब्ह क्यूँ फिरती है घबराई कई दिन से
ख़ुदा जाने ये अब क्या हो गया हम बद-नसीबों को
कि तेरे ग़म की लज़्ज़त भी न रास आई कई दिन से
इधर भी इक नज़र ऐ मालिक-ए-वीराना-ओ-गुलशन
तिरे कूचे में फिरता है ये सौदाई कई दिन से
शहीद-ए-इश्क़ की ये मौत है या ज़िंदगी यारब
नहीं मालूम क्यूँ बजती है शहनाई कई दिन से
क़यामत से नहीं कम फ़ुर्क़त-ए-अहबाब का ग़म भी
दिल-ए-मुज़्तर को रोती है शकेबाई कई दिन से
नज़र में तिश्नगी लब पर दुआएँ दिल में उम्मीदें
हरम के गर्द फिरता है तमन्नाई कई दिन से
दिल-ए-बीमार से क्या कह दिया उन की निगाहों ने
कुछ अब महसूस होती है तवानाई कई दिन से
किसी अहल-ए-नज़र की फिर उन्हें शायद ज़रूरत है
कि फिर बेताब है शौक़-ए-ख़ुद-आराई कई दिन से
सुनें अर्बाब-ए-महफ़िल गोश-ए-दिल से दिल की आवाज़ें
कि 'ज़ौक़ी' कर रहा है नग़्मा-पैराई कई दिन से
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