Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_d0efb101530c0a34f940b912301eec0f, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
सवाल - मुग़नी तबस्सुम कविता - Darsaal

सवाल

वो कैसा तिरे जिस्म का ख़्वाब था

कि जिस के लहू में शरारे उछलते रहे

कब जले और बुझे ख़्वाब है

वो हवा जो उन्हें छू गई

साँस बन कर अभी मौजज़न है रग-ओ-पै में

लेकिन शरारे कहाँ हैं

लहू बे-सबब घूमता है

ग़ुलामाना गर्दिश है कोल्हों में जकड़े हुए बैल की

जिस की आँखों पे पट्टी बंधी है

एक अंधा सफ़र है

अज़ल ता अबद

क्या यही थी तमन्ना कि दुनिया बने और सूरज के अतराफ़ चक्कर लगाती रहे

(639) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Sawal In Hindi By Famous Poet Mughni Tabassum. Sawal is written by Mughni Tabassum. Complete Poem Sawal in Hindi by Mughni Tabassum. Download free Sawal Poem for Youth in PDF. Sawal is a Poem on Inspiration for young students. Share Sawal with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.