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मुझे याद है - मुग़नी तबस्सुम कविता - Darsaal

मुझे याद है

मुझे याद है तिरी गुफ़्तुगू जो फ़ज़ा में थी

मुझे याद है तिरी आरज़ू

तिरी आरज़ू के क़रीब ही

मिरी ज़िंदगी थी खड़ी हुई

मिरे रास्ते में हर एक सम्त रुकावटें थी अटी हुई

मुझे याद है

वो अना-ब-दस्त सवाल भी

वो ख़याल भी

कोई हादसा जो शरीक हो तो सफ़र कटे

कि ये दाएरा तो क़फ़स है जिस का मुहीत मर्ग-ए-दवाम है

मुझे ज़िंदगी का शरार-ए-जस्ता अज़ीज़ था

कि मैं दाएरे से निकल गया

तिरी आरज़ू से ख़जिल हूँ मैं

मुझे अपने अहद का पास कुछ भी नहीं रहा

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