मुझे याद है
मुझे याद है तिरी गुफ़्तुगू जो फ़ज़ा में थी
मुझे याद है तिरी आरज़ू
तिरी आरज़ू के क़रीब ही
मिरी ज़िंदगी थी खड़ी हुई
मिरे रास्ते में हर एक सम्त रुकावटें थी अटी हुई
मुझे याद है
वो अना-ब-दस्त सवाल भी
वो ख़याल भी
कोई हादसा जो शरीक हो तो सफ़र कटे
कि ये दाएरा तो क़फ़स है जिस का मुहीत मर्ग-ए-दवाम है
मुझे ज़िंदगी का शरार-ए-जस्ता अज़ीज़ था
कि मैं दाएरे से निकल गया
तिरी आरज़ू से ख़जिल हूँ मैं
मुझे अपने अहद का पास कुछ भी नहीं रहा
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