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यहाँ से डूब कर जाना है मुझ को - मुग़नी तबस्सुम कविता - Darsaal

यहाँ से डूब कर जाना है मुझ को

यहाँ से डूब कर जाना है मुझ को

समुंदर में उतर जाना है मुझ को

अभी तो कू-ब-कू है ख़ाक मेरी

अभी तो दर-ब-दर जाना है मुझ को

कभी जाते हुए लम्बे सफ़र पर

अचानक ही ठहर जाना है मुझ को

ये हसरत है कहूँ मैं दोस्तों से

हुई अब शाम घर जाना है मुझ को

तुझे अपना सभी कुछ सौंपना है

तिरे दामन में भर जाना है मुझ को

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