गिरना नहीं है और सँभलना नहीं है अब
गिरना नहीं है और सँभलना नहीं है अब
बैठे हैं रहगुज़ार पे चलना नहीं है अब
पिछ्ला पहर है शब का सवेरे की ख़ैर हो
बुझते हुए चराग़ हैं जलना नहीं है अब
है आस्तीं से काम न दामन से कुछ ग़रज़
पत्थर बने हुए हैं पिघलना नहीं है अब
मंज़र ठहर गया है कोई दिल में आन कर
दुनिया के साथ उस को बदलना नहीं है अब
लब-आशना-ए-हर्फ़-ए-तबस्सुम नहीं रहे
दिल के लहू को अश्क में ढलना नहीं है अब
(1074) Peoples Rate This