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फ़ज़ा में नग़्मा-ए-आवाज़-ए-पा है मेरे लिए - मुग़नी तबस्सुम कविता - Darsaal

फ़ज़ा में नग़्मा-ए-आवाज़-ए-पा है मेरे लिए

फ़ज़ा में नग़्मा-ए-आवाज़-ए-पा है मेरे लिए

कराँ से ता-ब-कराँ इक निदा है मेरे लिए

मैं अपनी ज़ात में लौटा तो फिर मिला न मुझे

वो एक शख़्स जो रोता रहा है मेरे लिए

सबब है रंज का कुछ ख़ू-ए-इज़्तिराब मिरी

कुछ अपने आप से भी वो ख़फ़ा है मेरे लिए

फ़लक तमाम है आग़ोश-ए-बाब-ए-महरूमी

शजर शजर यहाँ दस्त-ए-दुआ है मेरे लिए

किसी फ़िराक़ की तम्हीद बन के रह जाना

तिरे विसाल की तस्कीं भी क्या है मेरे लिए

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