नासेह यहाँ ये फ़िक्र है सीना भी चाक हो
है फ़िक्र-ए-बख़िया तुझ को गरेबाँ के चाक में
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'आज़ुर्दा' मर के कूचा-ए-जानाँ में रह गया
इस दर्द-ए-जुदाई से कहीं जान निकल जाए
निकलना हो दिल से दुश्वार क्यूँ
ऐ दिल तमाम नफ़अ है सौदा-ए-इश्क़ में
अगर हम न थे ग़म उठाने के क़ाबिल
ऐ दिल तमाम नफ़अ' है सौदा-ए-इश्क़ में
मैं और ज़ौक़-ए-बादा-कशी ले गईं मुझे
काश मक़्बूल हो दुआ-ए-अदू
नालों से मेरे कब तह-ओ-बाला जहाँ नहीं
क्या जानो जो असर है दम-ए-शो'ला-ताब में
कटती किसी तरह से नहीं ये शब-ए-फ़िराक़