तिरा ग़म दिल पे इफ़्शा कर रहे हैं
तिरा ग़म दिल पे इफ़्शा कर रहे हैं
सो दिल से कार-ए-दुनिया कर रहे हैं
तुझे अब क्या बताएँ हम तिरे बा'द
ब-नाम-ए-ज़ीस्त क्या क्या कर रहे हैं
हज़ारों रंज पै-दर-पै उठा कर
बस इक ग़म का मुदावा कर रहे हैं
कुछ ऐसा है ग़म-ए-तन्हाई दर-पेश
कि इक आलम को अपना कर रहे हैं
कभी जो काम चाहत से किए थे
उन्हीं का आज सदमा कर रहे हैं
ये ज़ख़्म-ए-दिल सलामत हम इसी को
मुक़द्दर का सितारा कर रहे हैं
किसी सूरत जो पूरी हो न पाए
हम इक ऐसी तमन्ना कर रहे हैं
जो करना चाहते थे बिल-इरादा
वो सब कुछ बे-इरादा कर रहे हैं
उन्ही लोगों को है दुनिया मयस्सर
कि जो उस से किनारा कर रहे हैं
वही करने की हसरत जाँ-गुसिल है
कि जो करने का चर्चा कर रहे हैं
(622) Peoples Rate This