मैं दिन भर पहले इस दुनिया की जौलानी में रहता हूँ
मैं दिन भर पहले इस दुनिया की जौलानी में रहता हूँ
मगर फिर रात भर दिल की बयाबानी में रहता हूँ
यहाँ लोगों के दिल और चेहरे हर लहज़ा बदलते हैं
मुझे लगता है मैं इक दश्त-ए-इम्कानी में रहता हूँ
मुझे कुछ फ़िक्र-ए-फ़र्दा है न कोई हाल की उलझन
कि मैं तो गुज़रे वक़्तों की परेशानी में रहता हूँ
जो अब तक कर नहीं पाया ख़लिश जाँ-सोज़ है उस की
जो कर बैठा हूँ अब उस की पशेमानी में रहता हूँ
मुझे हर रोज़ ये दुनिया नई सूरत में मिलती है
मैं पैहम इस शनासाई की हैरानी में रहता हूँ
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