जला दिया है कि इस ने बुझा दिया है मुझे
जला दिया है कि इस ने बुझा दिया है मुझे
प दिल की आग ने कंदन बना दिया है मुझे
तिरी तलब की अता है कि जिस ने मिस्ल-ए-चराग़
हवा-ए-दहर में जलना सिखा दिया है मुझे
मैं सब से दूर फ़क़त अपने आप में गुम था
किसी के क़ुर्ब ने सब से मिला दिया है मुझे
मैं एक ज़र्रा-ए-नाचीज़ काएनात में था
ये काएनात सा किस ने बना दिया है मुझे
सो अब मैं ओहद-ए-दुनिया से क्या ग़रज़ रखूँ
किसी ने मंसब-ए-दिल पर बिठा दिया है मुझे
तमाम उम्र जो रक्खेगा ज़ीस्त को रौशन
तिरी नज़र ने वो मंज़र दिखा दिया है मुझे
मैं एक दश्त था ख़ुद अपने ही सराब में गुम
बस एक मौज ने दरिया बना दिया है मुझे
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