हर घड़ी इक सितम ईजाद किया है हम ने
हर घड़ी इक सितम ईजाद किया है हम ने
शहर-ए-दिल ख़ुद तुझे बरबाद किया है हम ने
आज इस के ही करिश्मों से हैं महजूब बहुत
कल जिसे ख़ुद ही परी-ज़ाद किया है हम ने
इक इमारत कि उठानी है सर-ए-दश्त-ए-वजूद
सो ग़म-ए-जाँ तुझे बुनियाद किया है हम ने
अपने सीने में उतारे कई ख़ंजर सौ बार
तुझ को इक बार जो नाशाद किया है हम ने
किस क़दर आज हवाओं में लरज़ता रहा दिल
किस क़दर आज तुझे याद किया है हम ने
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