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चले जाएँगे सब अस्बाब हैरानी न जाएगी - मुबीन मिर्ज़ा कविता - Darsaal

चले जाएँगे सब अस्बाब हैरानी न जाएगी

चले जाएँगे सब अस्बाब हैरानी न जाएगी

किसी सूरत दिल-ओ-जाँ की ये अर्ज़ानी न जाएगी

सो अब तय है न जाएँगी ये दिल की वहशतें जब तक

रगों में इस उमडते ख़ूँ की तुग़्यानी न जाएगी

सबब ये है कि पहले हो चुका है फ़ैसला सो अब

गवाही दी तो जाएगी मगर मानी न जाएगी

तुझे उस दर से लेना था नया रंज-ओ-अलम हर पल

दिल-ए-वहशत-असर तेरी तन-आसानी न जाएगी

खुला ये ख़ून की वहशत है सो मैं मर तो सकता हूँ

मिरे अंदर से लेकिन ख़ू-ए-सुल्तानी न जाएगी

मयस्सर आएँगी हर पल बहुत आसाइशें लेकिन

मुझे मालूम है अब दिल की वीरानी न जाएगी

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