सज्दा-ए-याद में सर अपना झुकाया हुआ है
सज्दा-ए-याद में सर अपना झुकाया हुआ है
हम ने उश्शाक़ के रुत्बे को बढ़ाया हुआ है
तोहमतें हों या कि पत्थर हों मुक़द्दर उस का
एक दीवाना तिरे शहर में आया हुआ है
मेरा मक़्सद था फ़क़त ख़ाक उड़ाना साहब
इस लिए दश्त को घर-बार बनाया हुआ है
शौकत-ए-मज्लिस-ए-हिज्राँ को बढ़ाना था सो यार
मैं ने पलकों पे तिरा हिज्र सजाया हुआ है
इक परी-ज़ाद है धड़कन के इलाक़े में मुक़ीम
जिस ने माहौल को पुर-वज्द बनाया हुआ है
पाँव में डाल के तुझ नाम के घुँगरू हम ने
अपने अंदर ही मियाँ रक़्स रचाया हुआ है
यार की सोहबत-ए-पुर-फ़ैज़ की बरकत ने 'सईद'
इस ज़माने में मिरा काम चलाया हुआ है
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