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पहले वो अचानक नज़र आया उसे देखा - मुबश्शिर सईद कविता - Darsaal

पहले वो अचानक नज़र आया उसे देखा

पहले वो अचानक नज़र आया उसे देखा

फिर दिल ने किया और तक़ाज़ा उसे देखा

वो हुस्न बड़ी देर रहा सामने मेरे

फिर मैं ने मियाँ जिस तरह चाहा उसे देखा

वो पल तो मिरी आँख से जाता ही नहीं है

इक रोज़ दरीचे से मैं झाँका उसे देखा

वो हुस्न के मेयार पे पूरा था बहर-तौर

देखा ही नहीं कोई भी जैसा उसे देखा

इक शाम वो कुछ ऐसा खुला ऐसा खुला बस

जैसा मैं समझता था सो वैसा उसे देखा

दरिया सा समुंदर में उतरने को था बेताब

उतरा उसे देखा जो वो डूबा उसे देखा

छाया है ख़यालों में 'सईद' ऐसा कोई शख़्स

लगता है कि जिस ने मुझे देखा उसे देखा

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