गिर्या-ज़ारी भी करूँ शोर मचाऊँ मैं भी
गिर्या-ज़ारी भी करूँ शोर मचाऊँ मैं भी
हालत हाल-ए-परिंदों को सुनाऊँ मैं भी
ज़िंदगी रोज़ नया रूप दिखाती है मुझे
अर्सा-ए-जिस्म कभी छोड़ के जाऊँ मैं भी
हज़रत-ए-क़ैस अगर आप इजाज़त दे दें
कभी वहशत के लिए दश्त में आऊँ मैं भी
सारे माहौल को दे दूँ किसी ताबीर का वज्द
अपनी मस्ती में कोई ख़्वाब सुनाऊँ मैं भी
मैं कोई इश्क़ करूँ हार के जीता हुआ इश्क़
यानी उश्शाक़ में कुछ नाम कमाऊँ मैं भी
आज तन्हाई के मंज़र ने सुझाया है 'सईद'
मौसम-ए-हिज्र की तस्वीर बनाऊँ मैं भी
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