इस्म-ए-आज़म
मैं मशहूर हो गया हूँ
अचानक इतना ज़ियादा
कि वो लोग मुझे बुरा कहने लगे हैं
जो कभी मुझे मिले ही नहीं
जो मुझे जानते ही नहीं
माहेरीन-ए-नफ़सियात कहते हैं
ग़ैर-हक़ीक़ी दुनिया में रहने वाले
जज़्बाती लोग
ख़ुद को हीरो समझ कर
जागती आँखों के ख़्वाबों में
अपनी मर्ज़ी के विलेन तख़्लीक़ कर लेते हैं
इस ग़लत-फ़हमी का तअ'ल्लुक़
उन के शुऊ'र से नहीं होता
उन के आ'माल से नहीं होता
उन के शजरे से नहीं होता
ये एक ज़ेहनी आरिज़ा है
इस लिए
मुझे किसी से शिकायत नहीं
मरीज़ों से हमदर्दी है
और थोड़ी सी ख़ुशी भी
कि गालियों से कली करने वाले
कुछ लोगों को
मेरा नाम ले कर
तस्कीन मिलने लगी है
मेरा नाम
इस्म-ए-आज़म बन गया है
(1970) Peoples Rate This