अपने हाथों की लकीरें न मिटा रहने दे
अपने हाथों की लकीरें न मिटा रहने दे
जो लिखा है वही क़िस्मत में लिखा रहने दे
सच अगर पूछ तो ज़िंदा हूँ उन्हीं की ख़ातिर
तिश्नगी मुझ को सराबों में घिरा रहने दे
आह ऐ इशरत-ए-रफ़्ता निकल आए आँसू
मैं न कहता था कि इतना न हँसा रहने दे
उस को धुँदला न सकेगा कभी लम्हों का ग़ुबार
मेरी हस्ती का वरक़ यूँही खुला रहने दे
शर्त ये है कि रहे साथ वो मंज़िल मंज़िल
वर्ना ज़हमत न करे बाद-ए-सबा रहने दे
यूँ भी एहसास-ए-अलम शब में सिवा होता है
ऐ शब-ए-माह मिरी हद में न आ रहने दे
ज़िंदगी मेरे लिए दर्द का सहरा है 'शमीम'
मेरे माज़ी मुझे अब याद न आ रहने दे
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