क्या कहें क्या क्या किया तेरी निगाहों ने सुलूक
दिल में आईं दिल में ठहरीं दिल में पैकाँ हो गईं
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दर्द-ए-दिल यार रहा दर्द से यारी न गई
अपनी सी करो तुम भी अपनी सी करें हम भी
यूँ ये बदली काली काली जाएगी
मिरी ख़ाक भी उड़ेगी बा-अदब तिरी गली में
मुझ को मालूम है अंजाम-ए-मोहब्बत क्या है
यहाँ क्या है वहाँ क्या है इधर क्या है उधर क्या है
ताज़ा आज़ार का अरमान कहाँ जाता है
जो दिल-नशीं हो किसी के तो इस का क्या कहना
जाँ-निसारान-ए-मोहब्बत में न हो अपना शुमार
बग़ल में हम ने रात इक ग़ैरत-ए-महताब देखा है
कब वो आएँगे इलाही मिरे मेहमाँ हो कर
आने में कभी आप से जल्दी नहीं होती