कब वो आएँगे इलाही मिरे मेहमाँ हो कर
कौन दिन कौन बरस कौन महीना होगा
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जो उन को चाहिए वो किए जा रहे हैं वो
कहाँ क़िस्मत में इस की फूल होना
यहाँ क्या है वहाँ क्या है इधर क्या है उधर क्या है
क्यूँ किया करते हैं आहें कोई हम से पूछे
गई बहार मगर अपनी बे-ख़ुदी है वही
शिकस्त-ए-तौबा की तम्हीद है तिरी तौबा
किसी ने बर्छियाँ मारीं किसी ने तीर मारे हैं
बिखरी हुई है यूँ मिरी वहशत की दास्ताँ
हवा बाँधते हैं जो हज़रत जिनाँ की
न मानोगे न मानोगे हमारी
फिर मिले हम उन से फिर यारी बढ़ी
किसी की तमन्ना निकलती रही