ईमान की तो ये है कि ईमान अब कहाँ
काफ़िर बना गई तिरी काफ़िर-नज़र मुझे
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जो दिल-नशीं हो किसी के तो इस का क्या कहना
किसी से आज का वादा किसी से कल का वादा है
मस्जिद की सर-ए-राह बिना डाल न ज़ाहिद
लगा दे सोज़-ए-मोहब्बत फिर आग सीने में
कभी दिल की कली खिली ही नहीं
आइना सामने अब आठ पहर रहता है
कुछ इस अंदाज़ से सय्याद ने आज़ाद किया
पर्दे पर्दे में बहुत मुझ पे तिरे वार चले
क़ुबूल हो कि न सज्दा ओ सलाम अपना
कहाँ क़िस्मत में इस की फूल होना
आने में कभी आप से जल्दी नहीं होती
जो क़यामत का नहीं दिन वो मिरा दिन कैसा