बेवफ़ा उम्र दग़ाबाज़ जवानी निकली
न यही रहती है ज़ालिम न वही रहती है
Javed Akhtar
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जाँ-निसारान-ए-मोहब्बत में न हो अपना शुमार
क्या कहें क्या क्या किया तेरी निगाहों ने सुलूक
क़िबला-ओ-काबा ये तो पीने पिलाने के हैं दिन
हम भी दीवाने हैं वहशत में निकल जाएँगे
मेहराब-ब-इबादत ख़म-ए-अबरू है बुतों का
इक मिरा सर कि क़दम-बोसी की हसरत इस को
ये ग़म-कदा है इस में 'मुबारक' ख़ुशी कहाँ
पर्दे पर्दे में बहुत मुझ पे तिरे वार चले
आब-ओ-दाना तिरा ऐ बुलबुल-ए-ज़ार उठता है
दिल लगाते ही तो कह देती हैं आँखें सब कुछ
जो निगाह-ए-नाज़ का बिस्मिल नहीं
शिकस्त-ए-तौबा की तम्हीद है तिरी तौबा