दर्द-ए-दिल यार रहा दर्द से यारी न गई
दर्द-ए-दिल यार रहा दर्द से यारी न गई
ज़िंदगी हम से तो बे-लुत्फ़ गुज़ारी न गई
दिन के नाले न गए रात की ज़ारी न गई
न गई दिल से कभी याद तुम्हारी न गई
हम तो ख़ूँ-गश्ता तमन्नाओं के मातम में रहे
सीना-कूबी न गई सीना-फ़िगारी न गई
इंतिज़ार आप का कब लुत्फ़ से ख़ाली निकला
राएगाँ रात किसी रोज़ हमारी न गई
बख़्शवाया मुझे तुम ने तो ख़ुदा ने बख़्शा
न गई रोज़-ए-जज़ा बात तुम्हारी न गई
लोग कहते हैं बदलता है ज़माना लेकिन
दिन हमारा न गया रात हमारी न गई
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