Ghazals of Mubarak Ansari
नाम | मुबारक अंसारी |
---|---|
अंग्रेज़ी नाम | Mubarak Ansari |
ज़मीन-ए-फ़िक्र में लफ़्ज़ों के जंगल छोड़ जाना
ये दोस्ती का तक़ाज़ा है इस को ध्यान में रख
उसी के प्यार को दिल से निकाल रक्खा है
फिसलने वाला था ख़ुद को मगर सँभाल गया
नफ़स नफ़स को हवा की रिकाब में रखना
कुछ अब के जंग पे उस की गिरफ़्त ऐसी थी
खींच कर मुझ को हर इक नक़्श-ओ-निशाँ ले जाए
हम तिरे शहर से यूँ जान-ए-वफ़ा लौट आए
गुमाँ की क़ैद-ए-हिसार-ए-क़यास से निकलो