तुम्हारी बज़्म में महरूम-ए-जाम हम भी थे
तुम्हारी बज़्म में महरूम-ए-जाम हम भी थे
फ़क़त रक़ीब नहीं तिश्ना-काम हम भी थे
फ़क़ीह-ए-शहर ने गुमराह कर दिया वर्ना
सिफ़त-शनास हलाल-ओ-हराम हम भी थे
अमामा-बंद-ओ-क़बा-पोश्गाँ का ज़िक्र ही क्या
तिरे हुज़ूर में बा-एहतिराम हम भी थे
शिकस्ता-पाई-ए-मीर-ए-सफ़र का क्या शिकवा
कि राह-ए-शौक़ में कुछ सुस्त-गाम हम भी थे
तिरी जफ़ाओं ने आज़ाद कर दिया वर्ना
तिरी अदाओं के अदना ग़ुलाम हम भी थे
निगाह-ए-ख़ास ने यक-लख़्त कर दिया ज़िंदा
वगर्ना कुश्ता-ए-दस्तूर-ए-आम हम भी थे
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