अपनी नज़र में आप को रुस्वा न कर सके
अपनी नज़र में आप को रुस्वा न कर सके
हम दुश्मनों के साथ भी धोका न कर सके
सब रास्तों का इल्म था मंज़िल क़रीब थी
अफ़्सोस हम-सफ़र का इरादा न कर सके
आँखें असीर ज़ेहन गिरफ़्तार लब ब-क़ुफ़्ल
उन के हुज़ूर एक इशारा न कर सके
उन का सितम तो ख़ैर बहुत सह लिया मगर
उन के करम का बोझ गवारा न कर सके
यारान-ए-ग़म-गुसार दिलासे तसल्लियाँ
तिनके थे जिन पे कोई सहारा न कर सके
लिखते रहे जुनूँ की हिकायात ख़ूँ-चकाँ
लेकिन किसी पे राज़ ये इफ़्शा न कर सके
ज़ुल्मत-परस्त चराग़ थे ऐसे भी कुछ 'रज़ा'
जलते रहे मगर जो उजाला न कर सके
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