तुझे देखा मिरी आँखों में जब शादाबियाँ आईं
तुझे देखा मिरी आँखों में जब शादाबियाँ आईं
तिरी बे-मेहर आँखों में तभी बे-ज़ारियाँ आईं
न जाने और क्या क्या कह रही थी वादियाँ मुझ से
तिरा जब ज़िक्र छेड़ा था अजब ख़ामोशियाँ आईं
हिसार-ए-यास की जानिब सदाएँ आ रही गरचे
महज़ चेहरे नहीं आए कई परछाइयाँ आईं
हमें शोहरत बुलंदी तक अगर ले के चली आई
मगर साए तले इस के कई नाकामियाँ आईं
नहीं है इश्क़ पहला सा न पहली सी कशिश बाक़ी
मगर अब साथ जीने की कई मजबूरियाँ आईं
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