महफ़िलों में ज़िक्र उस का जब छिड़ा मेरे लिए
महफ़िलों में ज़िक्र उस का जब छिड़ा मेरे लिए
पूछता हर एक से दिल क्या कहा मेरे लिए
क्या मराठी और उर्दू ज़ीस्त के मीज़ान में
एक घर पानी है तो दूजे हवा मेरे लिए
जब कभी आवाज़ दी तू ने मुझे तो ये लगा
दैर की हो घंटियाँ तेरी सदा मेरे लिए
सफ़्हा-ए-हस्ती पे लिक्खा बे-ख़ुदी में एक नाम
साँस लेने का सबब वो बन गया मेरे लिए
जब कहा उस ने कि दो है जिस्म अपने एक जान
ये पुराना खेल पर खेला नया मेरे लिए
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