आख़िरी साँसों तलक लड़ती रही
आख़िरी साँसों तलक लड़ती रही
ज़िंदगी उम्मीद हूँ कहती रही
चंद जुमलों में कही सब के लिए
वो कहानी उम्र-भर चलती रही
जाने क्या है बात पर मंज़िल मुझे
रहगुज़र छू कर तिरी मिलती रही
याद तो आया न हो ऐसा नहीं
दीद की ख़्वाहिश मगर मिटती रही
लाख घाव को छुपाया था मगर
ज़ख़्म ढकने की रिदा फटती रही
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