आईने टूटते हैं नज़र को रसाई दे
आईने टूटते हैं नज़र को रसाई दे
अपनी ही क्यूँ न हो कोई सूरत दिखाई दे
है उस की नेकियों में अभी तक मिरा शुमार
बे-शक वो मेरे नाम हज़ारों बुराई दे
ऐ याद-ए-यार साथ तिरे चल चुका बहुत
मैं थक के चूर-चूर हुआ अब रिहाई दे
मैं ने हर इक गुनाह तुम्हारा छुपा लिया
मानेगा कौन लाख अंधेरा सफ़ाई दे
फिर रास्तों पे रात भटकती है ऐ 'तपिश'
मैं इक दिया जलाऊँ कि मंज़िल दिखाई दे
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