उस ग़ैरत-ए-नाहीद की हर तान है दीपक
शोला सा लपक जाए है आवाज़ तो देखो
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उम्र तो सारी कटी इश्क़-ए-बुताँ में 'मोमिन'
दुश्नाम-ए-यार तब्-ए-हज़ीं पर गिराँ नहीं
मोमिन ये असर सियाह-मस्ती का न हो
बे-ख़ुद थे ग़श थे महव थे दुनिया का ग़म न था
'मोमिन' ख़ुदा के वास्ते ऐसा मकाँ न छोड़
हम-रंग लाग़री से हूँ गुल की शमीम का
हो गया राज़-ए-इश्क़ बे-पर्दा
क्यूँ ज़र्द है रंग किस लिए आँसू लाल
माशूक़ से भी हम ने निभाई बराबरी
ठानी थी दिल में अब न मिलेंगे किसी से हम
सब्र वहशत-असर न हो जाए
हम समझते हैं आज़माने को