उलझा है पाँव यार का ज़ुल्फ़-ए-दराज़ में
लो आप अपने दाम में सय्याद आ गया
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इम्तिहाँ के लिए जफ़ा कब तक
न करो अब निबाह की बातें
मैं अगर आप से जाऊँ तो क़रार आ जाए
कुछ क़फ़स में इन दिनों लगता है जी
रोया करेंगे आप भी पहरों इसी तरह
'मोमिन' ख़ुदा के वास्ते ऐसा मकाँ न छोड़
दीदा-ए-हैराँ ने तमाशा किया
ताब-ए-नज़्ज़ारा नहीं आइना क्या देखने दूँ
हो गए नाम-ए-बुताँ सुनते ही 'मोमिन' बे-क़रार
तुम हमारे किसी तरह न हुए
असर उस को ज़रा नहीं होता
वादे की जो साअत दम-ए-कुश्तन है हमारा